गली के मुहाने पर
एक बल्ब लटका करता था
पिद्दी था, प्यादा था
जंग लड़ने पर आमादा था
धागे से तार पर
झूलता था मदमस्त
झिलमिलाता था, भुनभुनाता था
रात भर गश्त लगाता था
तस्कर था रोशनी का
सुराख की सुरंग से आर पार करता था
रसिक था परछाईयो का
कठपुतलियां बना व्यापार करता था
महफ़िल जमाता था झींगुरो संग
रूठता तो लुप्प हो जाता था
कभी यूँ ही खिलखिला उठता भोर सवेरे
कभी घुप्प अँधेरे में चुप हो जाता था
गली के मुहाने पर
एक बल्ब लटका करता था
- अक्षय
एक बल्ब लटका करता था
पिद्दी था, प्यादा था
जंग लड़ने पर आमादा था
धागे से तार पर
झूलता था मदमस्त
झिलमिलाता था, भुनभुनाता था
रात भर गश्त लगाता था
तस्कर था रोशनी का
सुराख की सुरंग से आर पार करता था
रसिक था परछाईयो का
कठपुतलियां बना व्यापार करता था
महफ़िल जमाता था झींगुरो संग
रूठता तो लुप्प हो जाता था
कभी यूँ ही खिलखिला उठता भोर सवेरे
कभी घुप्प अँधेरे में चुप हो जाता था
गली के मुहाने पर
एक बल्ब लटका करता था
- अक्षय
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