किताब मिली है 
आज बहुत दिनो बाद जो धूप खिली है
छज्जे पर पड़ी एक पुरानी किताब मिली है
मटमैला, बदरंगा सा गत्ते का कवर
आधा चढ़ा है, आधा उतर गया है 
बस लटका है चंद धागो के सहारे
और कोने से ना जाने कौन कुतर गया है
अंदर, पीले पड़े पन्ने धूमिल से हो चुके है 
ना सर समझ आये ना पैर! बड़ा झमेला है 
बस श्ब्दो और अक्षरो की रस्साकशी समझिये
वैसे, किसी ने पीछे कटटम कुटटा खेला है
काका हाथरसी की चुटकिया है, या कृन्दन गंभीर
रासलीला युक्त पन्कितयां , या दैत्यो का साया है 
सोचता हूं, एक बार को कलम ले मैं खुरच कर देखूँ 
या दुबका कर लिटा दूं दोबारा, जहां से उठाया है 
आज बहुत दिनो बाद जो धूप खिली है
छज्जे पर पड़ी एक पुरानी किताब मिली है
- अक्षय सिंह 

 


